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शब्दयोग

शब्दयोग

विन्दु के बाद शब्द का-नाद का ध्यान करो। ‘न नाद सदृशो लयः।’ पहले विन्दु का ध्यान करो, फि़र नाद का। इस प्रकार लोग नित्य अभ्यास करते हुए आगे बढ़ सकते हैं। कोई पूछे कि ईश्वर क्या है, तो पूछो कि रूप क्या है? जो इन आँखों से देखा जाय। उसी तरह जो चेतन आत्मा से ग्रहण हो, वह ईश्वर या परमात्मा है। चेतन आत्मा को जड़ का संग छूटे, इसी के लिए दृष्टि-साधान और शब्द-साधान है। दृष्टि-साधान करने की शक्ति प्राप्त करने के लिए मानस जप और मानस ध्यान है। इसके लिए ऐसा नहीं कि काम आज शुरू करो और आज ही खतम। भगवान बु) ने 550 जन्मों में सिि) प्राप्त की थी। भगवान कृष्ण ने भी अनेक जन्मों की बात कही है। यह सुनकर शिथिलता लाने की बात नहीं। धाीरे-धाीरे करते जाओ, एक-न- एक दिन काम अवश्य समाप्त होगा। ( 63- अमृत को नत्रें से पान करो )
विन्दु वह है, जिसका स्थान है, परिमाण नहीं। परिमाण-रहित सूक्ष्मतम पदार्थ को विन्दु कहते हैं। आपकी दृष्टि जहाँ सिमटकर रहेगी, वहीं विन्दु उत्पन्न होता है। जहाँ विन्दु है, वहीं नाद है। ( 130- गुरु गोविन्द सिंह की महानता )
दृश्य जगत का बीज विन्दु है और अदृश्य जगत का बीज शब्द है। जिसकी वृत्ति शब्द-रूप शिव को पकड़ लेती है, वह सारी सृष्टि को अंत कर जाता है। उसे मोक्ष के साथ परमात्म-स्वरूप की प्राप्ति होे जाती है। (प्रवचन अंश : आत्मा को जानना सच्चा ज्ञान है)
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अगर शब्द छूट जाय तो सब छूट जाता है। शब्द अदृश्य है। दृश्य के अवलंब से दृश्य को पार किया जाता है। जैसे पानी के अवलंब से पानी को पार करता है, ज्योति से ज्योति को पार करता है( उसी प्रकार शब्द को पकड़कर शब्द को पार करता है। (प्रवचन अंश : शास्त्रें को मथने से क्या फ़ल?)
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