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मानस-ध्यान

मानस-ध्यान

जो मानस जप ठीक से करते हैं, उससे मानस ध्यान भी ठीक-ठीक होता है। मानस ध्यान ऐसा होना चाहिए कि हू-ब-हू देख लिया जाय। परम श्रद्धेय बाबा देवी साहब ने एक दिन मुझसे पूछने की कृपा की, ‘क्या तुम मानस ध्यान में रूप हू-ब-हू निकाल लेते हो?’ मैंने कहा-‘जी नहीं, धुंधला दिखाई देता है।’ इस बात पर बाबा साहब ने कहा-‘मैंने मानस ध्यान किया और हू-ब-हू निकाल लिया है।’ तो इस प्रकार दोनों सीढ़ियों पर मजबूत होने पर विशेष युक्ति-द्वारा बिना दृश्य आधार के दृष्टि स्थिर हो जाती है, तब विन्दु का उदय होता है।
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अपने इष्टदेव का ध्यान करो। कोई गुरु का ध्यान , कोई राम का, कोई कृष्ण का ध्यान करते हैं। आँख बंद करके जप जपना और मानस-ध्यान करना। कोई ॐ का ध्यान करते हैं और कोई अल्लाह लिखकर ध्यान करते हैं। अलीफ़ पर और विशेष सिमटाव होता है, इसका भी ध्यान करते हैं। देखते-देखते सोना के समान, चाँदी के समान चमकता है। पहला अध्याय अंधाकार मंडल में रहकर स्थूल जप, स्थूल ध्यान है। पहला अध्याय थोड़ा है, दूसरा अध्याय बहुत बड़ा है। स्थूल जप में और ध्यान में बहुत रूप और बहुत शब्द छूट जाते हैं। (प्रवचन अंश : पंडितों का वेद संतों का भेद)

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