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गुरुसेवी स्वामी भागीरथ दास जी महाराज

सृष्टि के आदिकाल से परम शान्ति-पद वा परमात्म-पद को प्राप्त किये हुए संत दैहिक, दैविक और भौतिक-त्रय ताप से संतप्त मानव-जाति को परम शान्ति वा परम सुख की राह दिखलाने के लिए इस संसार में भ्रमण करते हैं और ज्ञान-ध्यान रूपी निधि का रास्ता बतलाकर परम शांति प्राप्त करने का अधिकारी बना देते हैं। इतना ही नहीं, वे अपने सद्शिष्य को अपनी विशेष शक्ति देकर संसार के संतप्त मानव-जाति को ज्ञान-ध्यानरूपी निधि वितरण करने की आज्ञा प्रदान कर छोड़ जाते हैं।

20वीं शताब्दी के महान् संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज की सर्वज्ञता, सर्वसमर्थता एवं परोपकारिता विश्वविदित है। उन्हीं महापुरुष की अनवरत रूप से छाया की तरह अपने को पूर्ण रूप से न्योछावर कर शारीरिक एवं मानसिक सेवा करके पूज्यपाद गुरुसेवी स्वामी भगीरथ बाबाजी महाराज अपने सद्गुरु के संपूर्ण गुणों को अपने अंदर आत्मसात् आशीर्वाद प्राप्त किये हैं।

इनका जन्म भारतवर्ष के बिहार राज्यान्तर्गत पूर्णियाँ जिला, रूपौली थाना के अंतर्गत लालगंज की पावन धरती पर वैशाख शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2002 तदनुसार दिनांक 22 मई, 1945 ई0 मंगलवार के दिन लगभग 4 बजे अपराह्नकाल में हुआ था।

आपकी पूजनीया माताजी का नाम धनशी देवी, पिताजी का नाम श्रीबाला मंडल और दादाजी का नाम श्रीजानकी मंडलजी था। ये लोग जाह्नवी गोत्रन्तर्गत गंगोत्री कुल के थे। ये सबके-सब धार्मिक विचार के थे। आपके दादाजी प्रत्येक वर्ष वैशाख अमावस्या से वैशाख पूर्णिमा के बीच किन्हीं पंडित के द्वारा भागवत-कथा करवाते थे। आपके दरवाजे पर भागवत-कथा प्रारंभ था, उसी शुभमुहूर्त में आपका जन्म हुआ। यह शुभमुहूर्त दर्शाता है कि आप कितने भाग्यशाली हैं। इसी शुभमुहूर्त में जन्म लेने के कारण आपके दादाजी ने आपका शुभ नाम श्रीभागवत मंडलजी रख दिया था। कुछ वर्ष पीछे जब आप अपने ही गाँव में प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने के लिए गये, तो विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्रीअरविन्द बाबू ने आपके लेखन कॉपी के प्रथम पृष्ठ पर अपने से आपका नाम श्रीभगीरथ मंडल यह कहकर लिख दिया कि भागवत तो एक पुराण का नाम है। राजा सगर के वंश में एक धार्मिक राजा हो गये हैं, जिनका नाम भगीरथ था। उन्होंने ही तपस्या करके गंगा को पृथ्वी पर लाया था। इसीलिए तुम्हारा नाम भगीरथ रखता हूँ। तबसे आपको सभी कोई भगीरथ कहकर जानने लगे। पीछे जब आप अपने गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज की सेवा में रहने लगे, तो आपकी अहर्निश सेवा देखकर सभी लोग आपको गुरुसेवी भगीरथ बाबा कहने लगे।

आपके जन्म के कुछ समय बाद ही आपकी सौभाग्यशालिनी माताजी सख्त बीमार हो गयीं, जिसके कारण आप अपनी माँ के दुग्धपान से वंचित रह गये और आपका विशेषरूप से लालन-पालन आपकी दादीजी और आपकी छोटी फुआ कबूतरी देवी करने लगी। ये दोनों हर प्रकार से आपकी देख-रेख किया करती थीं। आपको जरा-सा भी कष्ट का अनुभव नहीं होने देती थीं। आप भी शान्त स्वभाव के थे। आपके शांत स्वभाव को देखकर परिवार एवं समाज के लोग बहुत खुश रहा करते थे। आप बचपन में भी एकांतप्रिय थे। जब कभी आपकी फुआ आपको घुमाने के ख्याल से खेत ले जातीं, तो आप एकांत पाकर खेत की मेढ़ पर पलथी मारकर बैठ जाते और अपने अंदर की सन्-सन् की आवाज को सुनने लगते थे। वह आवाज आपको सुनने में बड़ा अच्छा लगता था। आपको लगता था कि उस आवाज को हर हमेशा सुनते रहें।

लगता है कि आपके पूर्वजन्म की, की गयी अंतस्साधना का संस्कार आवाज सुनते रहने की प्रेरणा दे रहा हो। मेढ़ पर एक आसन से देर तक बैठे रहने पर परिवार के लोगों को आश्चर्य लगता था और जब आपको मेढ़ पर से उठने के लिए जोर-जोर से पुकारकर एवं देह को हिलाकर उठने के लिए विवश कर देते थे, तब आप लाचार होकर उठ जाते और चुपचाप किन्हीं से कुछ वार्तालाप किये सीधे घर की ओर चल देते थे।

साधु-महात्माओं का सम्मान करना, उनको प्रणाम करना आपकी स्वाभाविक प्रवृत्ति थी। अगर आप किसी साधु को रास्ता चलते देख लेते, तो आप दौड़कर उनके समीप चले जाते थे और कुछ दूर से ही हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए बोलते-‘दंडवत् बाबा! दंडवत् बाबा-----। भीख माँगनेवाले व्यक्ति को या किसी वेश में रहनेवाले साधु को कुछ दे देना या भोजन करा देना आपका स्वभाव बन गया था। आप अपने घर में विरक्त भाव से रहा करते थे। बचपन में विद्याध्ययन की रुचि नहीं थी। जब आप कुछ सयाने हो गये, तब आप अपने बड़े भाई श्री तारणी मंडल जी के अधिक दबाव डालने पर किसी तरह अपने गाँव के बगल में स्थित ग्राम नगडहरी के खानगी स्कूल में अपने से बड़े भाई दशरथ मंडलजी के साथ पढ़ने के लिए जाने लगे। गुरुजी आपको जो कुछ पढ़ाते थे, आपको बहुत जल्द याद हो जाता था। जिससे गुरुजी आपको बहुत तन्मयता के साथ पढ़ाने भी लगे। आपके प्रारंभिक भौतिक विद्या के गुरुजी का नाम श्री सिताबी ठाकुर जी था।

लगभग 2 वर्षों के बाद आपका नामांकन प्राथमिक विद्यालय लालगंज में ही करा दिया गया। इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री अरविन्द पोद्दारजी थे। ये भी आपके सरल स्वभाव को देखकर तन्मयता के साथ पढ़ाने लगे। इन्होंने ही आपका नाम भागवत से बदलकर भगीरथ रखा था। तृतीय वर्ग से उत्तीर्ण होने के पश्चात् आपका नामांकन मध्य विद्यालय, ढोलबज्जा बाजार (भागलपुर) में चतुर्थ वर्ग में हुआ। इस स्कूल के प्रधानाध्यापक श्री मदन मंडलजी थे। नामांकन कराने हेतु प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री अरविन्द बाबू स्वयं गये हुए थे। नामांकन के बाद जब आप घर आये, तो उस रात को आपको जोरों का ज्वर आ गया। इस ज्वर की पीड़ा से आप रातभर संतप्त रहे। दूसरे दिन ज्वर शांत हो गया और आप उत्साहपूर्वक विद्यालय जाने लगे। आपकी अनुशासनशीलता, पढ़ने की लग्नशीलता और शांत स्वभाव देखकर सभी शिक्षक आप पर प्रसन्न रहते थे। आपने मध्य विद्यालय ढोलबज्जा में चतुर्थ वर्ग से सातवें वर्ग तक की शिक्षा पायी। आप पढ़ने में मेधावी छात्र की गिनती में थे, जिसके कारण आपको कल्याण विभाग से छात्रवृत्ति भी मिली थी। आप प्रायः रात में जगकर विद्या 

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